मध्य प्रदेश में गाय के गोबर से बनाए गए दीये से आया आदिवासियों के जीवन में उजाला

इंदौर : अवसर किसी की राह नहीं देखता, बस उसे पहचानने वाला चाहिए। धार जिले के छोटे से गांव नावदापुरा के युवक कमल पटेल ने इसे चरितार्थ कर दिखाया है। कमल ने जब क्षेत्र के आदिवासी परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट देखा तो इंटरनेट पर उनकी मदद का जरिया खोजना शुरू किया। थोड़े प्रयास से तरकीब मिल गई। कमल को गाय के गोबर से दीपक बनाने का तरीका पता चला।

एक गाय रखने वाले परिवार को हो रही दो हजार रुपये प्रति माह की आय

कमल ने पहले खुद दीपक बनाना सीखा फिर गांव के पांच लोगों को सिखाया। इन्होंने क्षेत्र के 25 आदिवासी परिवारों को प्रशिक्षण दिया। धार्मिक रूप से पवित्र माने जाने वाले गाय के गोबर से बने दीपक बिकने लगे। अब एक गाय रखने वाले परिवार को इससे दो हजार रुपये प्रति माह की आय हो रही है।

गाय के जिस गोबर को फेंक देते हैं, उसी से कमाई भी कर सकते हैं

स्नातक के दूसरे साल के बाद पढ़ाई छोड़ चुके कमल ने शहीद टंटिया मामा गो सेवा समिति बनाकर आदिवासी गोपालकों को इससे जोड़ा। इन परिवारों को बताया गया कि गाय के जिस गोबर को वे फेंक देते हैं, उसी से कमाई भी कर सकते हैं। प्रशिक्षण लेने वाले परिवारों की करीब 50 गायें अब कामधेनु बन गई हैं। उनका गोबर और घी, दीपक व बाती में उपयोग हो रहा है। कमल ने प्रत्येक परिवार को प्रति गाय 500 दीपक बनाने का कार्य सौंपा है।

मदद के लिए बढ़े हाथ

एक संस्था ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया और चार रुपये में एक दीपक खरीदने का प्रस्ताव दिया है। दीपावली के त्योहार को देखते हुए गोबर से बने 12 दीपक, रुई और गाय के घी से बनीं 12 बातियों के बॉक्स को 75 रुपये में बेचा जा रहा है। कमल बताते हैं एक दीपक का वजन महज 10 ग्राम है। यह पानी में भी तैर सकता है। अब बड़े स्तर पर दीपक की बिक्री के लिए सांवरिया फाउंडेशन के सहयोग से मार्केटिंग की जाएगी।

इस तरह तैयार किए जाते हैं दीपक

गाय के गोबर के कंडे (उपले) बनाकर उसे एक मशीन में ग्राइंड कर बारीक चूरा तैयार किया जाता है।

इसमें थोड़ा सा लकड़ी का बुरादा, गो-मूत्र व कुछ मात्रा में मुल्तानी मिट्टी मिलाकर पेस्ट तैयार किया जाता है।

महाराष्ट्र से आनलाइन मंगाई गई मशीन के सांचों में इस पेस्ट को डाला जाता है।

सांचों से दीपक निकालकर सुखाए जाते हैं और फिर कई रंगों से रंगे जाते हैं। इस तरह इको फ्रेंडली दीपक तैयार हो जाते हैं।

हमने कभी सोचा नहीं था कि यह भी हो सकता है: गो पालक

गो पालक शांता बाई व लक्ष्मी बाई बताती हैं कि हमने कभी सोचा नहीं था कि इस तरह गोबर से दीपक बना सकते हैं। इससे हमें आय होगी और हमारी दीपावली खुशियों वाली होगी। वहीं, मुन्नीबाई बताती हैं कि यह कार्य हम लोग सामूहिक रूप से कर रहे हैं। इसमें हमारे बच्चे भी मदद कर रहे हैं। इससे होने वाली आय से दीपावली पर बच्चों के लिए नए कपड़े भी खरीदे जा सकेंगे।

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