चिंता का एक सबसे बड़ा दुष्प्रभाव ये भी है कि चिंता करने से आने वाली समस्या का हल तो नहीं होता है मगर वर्तमान की शांति जरूर भंग हो जाती है।
जीवन में कठिनाईयाँ आती अवश्य हैं मगर चिन्ता तो किसी समस्या का हल नहीं हो सकती। चिन्ता हमारी सोचने की क्षमता को अवरुद्ध कर देती है और यही अवरोध तो हमारे दुखों का मूल कारण है। चिन्ताग्रस्त व्यक्ति एक बार नहीं अनेक बार मरता है। वह एक बार नहीं आजीवन जलता रहता है।
किसी भी समस्या के आ जाने पर उसके समाधान के लिए विवेकपूर्ण निर्णय ही चिन्तन है। चिन्तनशील व्यक्ति के लिए कोई न कोई मार्ग अवश्य मिल भी जाता है। उसके पास विवेक है और वह समस्या के आगे से हटता नहीं अपितु डटता है। समस्या के आगे डटना यानी समस्या का डटकर मुकाबला करना आधी सफलता प्राप्त कर लेना ही है। इसलिए जीवन को चिंता में नहीं, चिंतन में जीना सीखो क्योंकि जहाँ चिंतन है, वहाँ समाधान अवश्य है अथवा तो मार्ग अवश्य है।
संजीव कृष्ण ठाकुर