पते की बात : हिंदुत्व का दुश्मन सिकंदर खान लोदी
भारत में जितने भी मुस्लिम आक्रान्ताओं ने लूट की इच्छा से अथवा यहाँ पर शासन की इच्छा से आक्रमण किया सबके पीछे एक अवधारणा अवश्य थी कि यहाँ के पूजा स्थल ध्वस्त किये जायें, यहाँ हिंदुओं का कत्लेआम किया जावें तथा महिलाओं से बलात्कार कर उन्हें गुलाम बनाकर विदेशी बाजार में बेच जावें और इसके पीछे इस्लामिक खलीफा का निर्देश अवश्य होता था, इसका सीधा अर्थ है कि इस्लाम कभी सहिष्णुतावादी मानवतावादी पंथ नहीं रहा, अपने अस्तित्व में आने से आज तक वह लूट और कत्ल ओ गारत से ही चालू हुआ तथा आज भी वही सब चल रहा है।
सिकंदर खान लोधी भी हिंदुओं से जजिया लेता था , इसने एक बोधन नाम के निर्दोष ब्राह्मण को इसलिए फांसी दे दी क्योकि उसका कहना था कि हिंदू और मुस्लिम धर्म समान रूप से पवित्र है।
आप यह जानकर स्तब्ध रह जाएंगे कि सिकन्दर लोधी ने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति को तोड़कर उसके टुकड़ों को कसाइयों को माँस तोलने के लिए दे दिया था।। एक कट्टरपंथी तथा धर्मान्ध शासक था। उसने भी ही हिंदुओं के प्रति धार्मिक असहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया।
उसने हिन्दुओं पर घोर अत्याचार किए तथा अनेक मन्दिरों व मूर्तियों को तोड़ा।
मुस्लिम मजारों (मकबरे) में महिलाओं के जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया
सिकंदर लोधी) 1489 और 1517 के बीच दिल्ली सल्तनत के एक पश्तून सुल्तान था। वह अपने पिता बहलुल की मृत्यु के बाद लोदी वंश के शासक बना।
सिकंदर सुल्तान बहलुल लोदी का दूसरा पुत्र था, जिसने दिल्ली सल्तनत के लोदी शासक वंश की स्थापना की थी ।
सिकंदर एक सक्षम शासक था जिसने अपने क्षेत्र में व्यापार को प्रोत्साहित किया। उसने लोदी शासन का विस्तार ग्वालियर और बिहार के क्षेत्रों में किया । उसने अलाउद्दीन हुसैन शाह और उसके बंगाल राज्य के साथ एक संधि की । 1503 में, उन्होंने आगरा के वर्तमान शहर के भवन का निर्माण किया । [6]
1500 में, ग्वालियर नरेश मानसिंह तोमर ने दिल्ली के हिंदुओं को जो सिकंदर लोदी को उखाड़ फेंकने के लिए सहायता की। सुल्तान ने मानसिंह तोमर को दंडित करने और अपने क्षेत्र का विस्तार करने के लिए ग्वालियर के विरुद्ध अभियान शुरू किया। 1501 में, उसने ग्वालियर राज्य के नगर धौलपुर पर कब्जा कर लिया , जिसका शासक विनायक-देव ग्वालियर भाग गया।
वहाँ से सिकंदर लोदी ने ग्वालियर की ओर कूच किया, लेकिन चंबल नदी पार करने के बाद , उनके शिविर में एक महामारी के प्रकोप ने उन्हें अपना मार्च रोकने के लिए मजबूर कर दिया। मानसिंह तोमर ने इस अवसर का उपयोग लोदी के साथ सुलह करने के लिए किया, और अपने पुत्र विक्रमादित्य को सुल्तान के लिए उपहारों के साथ लोदी शिविर में भेजा। उन्होंने दिल्ली से विद्रोहियों को खदेड़ने का वादा किया, इस शर्त पर कि धौलपुर को विनायक-देव को बहाल किया जाएगा। सिकंदर लोदी इन शर्तों से सहमत हुए, और चले गए।
1504 में सिकंदर लोदी ने तोमरों के खिलाफ अपना युद्ध फिर से शुरू किया। सबसे पहले, उसने ग्वालियर के पूर्व में स्थित मंदरायल किले पर कब्जा कर लिया। उसने मंदरायल के आसपास के क्षेत्र में लूट और तोड़फोड़ की, लेकिन उसके कई सैनिकों के महामारी के प्रकोप में अपनी जान गवांने के बाद उसे दिल्ली लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। कुछ समय बाद, लोदी ने अपने अड्डे को नए स्थापित शहर आगरा में स्थानांतरित कर दिया , जो ग्वालियर के करीब स्थित था। उसने धौलपुर पर कब्जा कर लिया, और फिर ग्वालियर के खिलाफ जिहाद किया और सितंबर 1505 से मई 1506 तक, लोदी ने ग्वालियर के आसपास के ग्रामीण इलाकों में में हिंदुओं का भारी कत्ल किया व लूटपाट की लेकिन मान सिंह तोमर की हिट-एंड-रन रणनीति के कारण ग्वालियर किले पर कब्जा करने में असमर्थ रहा। फसलों को नष्ट करने के परिणामस्वरूप भोजन की कमी ने लोदी को घेराबंदी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। आगरा लौटने के दौरान, मानसिंह तोमर ने जटवार के पास उसकी सेना पर घात लगाकर हमला किया, जिससे सिकंदर लोधी को भारी नुकसान हुआ।
ग्वालियर किले पर कब्जा करने में विफल रहने के बाद, लोदी ने ग्वालियर के आसपास के छोटे किलों पर कब्जा करने का फैसला किया। इस समय तक धौलपुर और मंडरायल पहले से ही उसके नियंत्रण में थे। फरवरी 1507 में, उसने नरवर -ग्वालियर मार्ग पर स्थित उदितनगर (उतगीर या अवंतगढ़) किले पर कब्जा कर लिया । सितंबर 1507 में, उन्होंने नरवर के खिलाफ चढ़ाई की, वह एक साल की घेराबंदी के बाद किले पर कब्जा कर सका।
1516 में उसने पुनः ग्वालियर पर कब्जा करने की योजना बनाई, लेकिन एक बीमारी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। 1516 में मानसिंह की मृत्यु हो गई, और नवंबर 1517 में बीमारी के कारण सिकंदर लोदी की मृत्यु हो गयी ।
(भारत में इस्लामिक आक्रांता – भाग ग्यारह)
~अशोक चौधरी
आहुति – अलीगढ़