राधे – राधे
आज का भगवद चिन्तन
आंतरिक समझ
आंतरिक सूझ-बूझ के अभाव में एक धनवान व्यक्ति भी उतना ही दुःखी हो सकता है जितना एक निर्धन व्यक्ति और आंतरिक समझ की बदौलत एक निर्धन व्यक्ति भी उतना सुखी हो सकता है जितना एक धनवान। वाह्य सुख साधनों से किसी की सफलता का मूल्यांकन करना बुद्धिमत्ता नहीं है।
यहाँ पर अक्सर संग्रह करने वालों को रोते और बांटने वालों को हँसते देखा गया है। सुख और दुःख का मापक हमारी आंतरिक प्रसन्नता ही है। किस व्यक्ति ने कितना पाया यह नहीं अपितु कितना तृप्ति का अनुभव किया, यह महत्वपूर्ण है।
आज बहुत लोग ऐसे हैं जो धन के कारण नहीं मन के कारण परेशान हैं। सकारात्मक सोच के अभाव में जीवन बोझ बन जाता है। सत्संग से, भगवदाश्रय से, गुरु सन्निधि से ही जीवन में विवेक एवं आंतरिक समझ पैदा होती है।
संजीव कृष्ण ठाकुर जी