दुद्धी रासलीला: मीराबाई की श्रीकृष्ण भक्ति लीला का हुआ सजीव मंचन

उपेन्द्र कुमार तिवारी दुद्धी ब्यूरो (सोनभद्र/उत्तर प्रदेश)

दुद्धी-(सोनभद्र)-श्रीरासलीला आयोजन समिति दुद्धी के तत्वावधान में आयोजित रासलीला मंचन के क्रम में पांचवें दिन शुक्रवार को भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई की भक्ति चरित लीला का सजीव मंचन किया गया। जिसे देखकर श्रद्धालु दर्शक भाव विभोर हो गये।
श्री विशाखा रमण बिहारी रासलीला मण्डल संस्थान वृंदावन के कलाकारों द्वारा लीला मंचन में दिखाया गया कि मीराबाई का जन्म सन 1498 में मेड़ता राजस्थान के राठौड़ राजपूत परिवार में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ।
मीराबाई के बाल मन में कृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि यौवन काल से लेकर मृत्यु तक मीरा ने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। मीरा बाई का कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना की वजह से अपने चरम पर पहुंच था। मीरा बाई के बचपन में एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीरा बाई भी उनके साथ बारात देख रही थीं। इस दौरान मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है। इस पर मीराबाई की माता ने श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ इशारा कर कह दिया कि वही तुम्हारे दूल्हा हैं। यह बात मीरा बाई के बाल मन में एक गांठ की तरह बंध गई।
मीराबाई का विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में राणा सांगा के पुत्र भोजराज से कर दिया गया। इस शादी के लिए पहले तो मीरा बाई ने मना कर दिया। पर जोर देने पर वह फूट फूटकर रोने लगी और विदाई के समय कृष्ण की वहीं मूर्ति अपने साथ ले गई, जिसे उसकी माता ने उनका दूल्हा बताया था। मीराबाई ने लोक लज्जा और परंपरा को त्याग कर अनूठा प्रेम और भक्ति का परिचय दिया। विवाह के दस बरस बाद उनके पति का देहांत हो गया। मीराबाई के कृष्ण प्रेम को देखते हुए लोक लाज की वजह से मीराबाई के ससुराल वालों ने उन्हें मारने के लिए कई चालें चाली पर सब विफल रही। मीरा बाई ने भक्ति को एक नया आयाम दिया है, एक ऐसा स्थान जहां भगवान ही इंसान का सब कुछ होता है। दुनिया के सभी लोभ उसे मोह से विचलित नहीं कर सकते। एक अच्छा खासा राजपाट होने के बाद भी मीराबाई वैरागी बनी रहीं। सन 1546 में मीराबाई द्वारिका में भगवान द्वारिकाधीश रणछोड़ जी के विग्रह में विलीन होकर भगवान श्रीकृष्ण के परम धाम चली गई।रासलीला आयोजन समिति के अध्यक्ष त्रिलोकी नाथ सोनी,संयोजक श्यामसुंदर अग्रहरि, संरक्षक आलोक अग्रहरि सहित तमाम सहयोगी कार्यकर्ता कार्यक्रम को सफल बनाने में लगे रहे साथ ही सुरक्षा व्यवस्था की कमान स्थानीय पुलिस जवान सम्भाले रहे।

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