Happy Christmas: कट्टरता को एक तरफ रख दें तो हम सब इंसान भी हैं?

पिछले कुछ दशकों में कट्टर हिंदुत्व के प्रसार के साथ ही हिन्दुओं के एक छोटे-से तबके ने एक एजेंडे के तहत मुस्लिम और ईसाई त्योहारों के वहिष्कार की मुहिम चला रखी है। मूर्खताओं के इस सिलसिले की नवीनतम कड़ी है मानवता के सबसे बड़े प्रवक्ताओं में एक ईसा मसीह के जन्मदिन का विरोध।
25 दिसंबर के दिन क्रिसमस के समानांतर तुलसी पूजन दिवस का कर्मकांड रचा गया है। हवा बनाई जा रही है कि पवित्र तुलसी आज के ही दिन पृथ्वी पर पैदा हुई थी। अब इन मूर्खो को कौन समझाए कि मानव संस्कृति के निर्माण में किसी एक धर्म या पंथ का नहीं, दुनिया के सभी धर्मों और पंथों का कमोबेश योगदान है।

वेद-उपनिषद-गीता का भी, कुरआन का भी, बाइबिल का भी, गुरुग्रंथ साहब का भी, राम-कृष्ण का भी, बुद्ध का भी, महावीर का भी, इब्राहिम का भी, ईसा का भी, मोहम्मद का भी और गुरु नानक का भी। जैसे हमारे व्यक्तित्व में हमारे तमाम पुरखों के गुणसूत्र किसी न किसी रूप में मौज़ूद होते हैं, हमारे मष्तिष्क में भी सभी धर्मों और विचारों के गुणसूत्र हैं।
कट्टरता को एक तरफ रख दें तो हम सब थोड़े-थोड़े हिन्दू भी हैं, मुस्लिम भी, ईसाई भी, यहूदी भी, बौद्ध भी, सिक्ख भी और यहां तक कि नास्तिक भी। धर्मों के रास्ते चाहे अलग हों, उनके मूल में प्रेम, ममता, दया, करुणा, क्षमा, परोपकार जैसे मानवीय मूल्य ही तो है ! जब तक दुनिया है, धर्म किसी न किसी रूप में रहेगा ही। दुर्भाग्य है कि कुछ लोग धर्मों के आधार पर मनुष्यों को जोड़ने में नहीं, तोड़ने में लगे हैं।

आपको पवित्र क्रिसमस की बधाई !

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