सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों के लिए समान कानूनी संरक्षण देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यौन हिंसा अपराध के मामलों में ट्रांसजेंडर समुदाय को एक समान कानूनी संरक्षण मुहैया कराने के लिए दाखिल जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर समाज के लोगों को यौन हिंसा के अपराधों से संरक्षण के लिए कोई दंडात्मक कानून या प्रावधान नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिका में गंभीर सवाल उठाए गए हैं और यह सुनवाई के योग्‍य है।

मुख्‍य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने अधिवक्ता रीपक कंसल की ओर से पेश वकील विकास सिंह से कहा कि ऐसे मामलों का विवरण दें जिनमें कानून के अभाव के चलते परिस्थितियों से निबटने के लिए आदेश दिए गए थे। वीडियो कांफ्रेंस के जरिए सुनवाई के दौरान पीठ ने कार्य स्थल पर महिला के यौन उत्पीड़न की रोकथाम संबंधी विशाखा प्रकरण के दिशानिर्देशों का भी जिक्र किया।

अदालत के निर्देश पर अधिवक्‍ता विकास सिंह ने कहा कि वह शीर्ष अदालत के समक्ष इस तरह के मामलों का विवरण पेश करेंगे जिनमें कानून के अभाव के कारण स्थितियों पर आदेश दिए गए थे। याचिका में यौन अपराधों के संबंध में भारतीय दंड संहिता 1860 के प्रावधानों एवं अन्य कानूनों में हाल के संशोधनों का हवाला दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि इनमें से किसी भी कानून में ट्रांसजेन्डर या किन्नरों के बारे में कोई जिक्र ही नहीं है।

याचिका में कहा गया है कि ट्रांसजेंडरों या किन्नरों को यौन अपराधों से बचाने के लिए मौजूदा कानूनों में सजा का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। याचिका में कानून एवं न्याय मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को भी पक्षकार बनाया गया है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से थर्ड जेंडर की श्रेणी में आने वाले लोगों को भी यौन अपराधों से बचाने के लिए समान कानूनी संरक्षण दिए जाने की गुजारिश की गई है।

 

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