आधुनिकता की मार से सिमटा खादी कारोबार नेताओं को भी खादी पहनने में अब नहीं कोई दिलचस्पी

बिधूना औरैया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आम आदमी के बेहतर भविष्य के लिए बुलंद उम्मीदों के साथ गांधी आश्रम की स्थापना की थी लेकिन उस दौर में हर गांव हर घर और हर व्यक्ति हाथ में चरखा होता था ऐसे में सबके पास रोजगार के अवसर थे और सभी देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रति संकल्पित थे और विदेशों में भी भारत की खादी की प्रमुख पहचान थी लेकिन आधुनिकता की मार से देश की सांस्कृतिक धरोहर को समेटे खादी उद्योग व खादी वस्त्रों की पहचान सिसकियां भरती नजर आ रही है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के द्वारा स्थापित खादी आश्रम यूं तो हर जगह स्थित है लेकिन सरकारों द्वारा खादी आश्रम के प्रति कोई खास ध्यान न दिए जाने और वहीं पाश्चात्य सभ्यता द्वारा मजबूत पैठ बनाए जाने के चलते बढी आधुनिकता की मार से खादी उद्योग पर संकट के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं। जिले भर में लगभग आधा दर्जन खादी आश्रम के भंडार स्थित हैं लेकिन अधिकांशतः इन खादी भंडारों पर सन्नाटा पसरा नजर आता है। खादी व रेशम के वस्त्र कभी अपनी गुणवत्ता और विश्वसनीयता के मामले में अपनी प्रमुख पहचान बनाए हुए थे लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में इन खादी के वस्त्रों को ऐसी नजर लगी कि अब नेताओं को भी खादी के वस्त्र पहनने में कोई दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है। राजनीति में भी अब युवाओं का भारी दखल है लेकिन यह युवा नेता भी अब रेडीमेड कपड़ों व जींस को ही अधिक तवज्जो देते नजर आ रहे हैं। बापू के खादी वस्त्रों की बदहाली का प्रमुख कारण बुनकरों पर ध्यान ना दिया जाना भी माना जा रहा है जिसके चलते खादी कंबल तेल ऊनी वस्त्र बनाने का कार्य क्षेत्र में अब कहीं नहीं दिखता है वहीं दूसरी ओर प्रशासन के पास बुनकरों का भी कोई लेखा-जोखा नहीं है। बुनकर रामपाल बताते हैं कि अब यदि हथकरघा लगा कर बुनाई की जाए तो उन्हें फायदे की कौन कहे घर का खर्च भी निकालना मुश्किल होगा।

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