चिंतन:दुसरो की तकलीफ में उनका संकट निवारक बनना ही श्रेष्ठ है..

 

राधे – राधे

आज का भगवद् चिंतन

श्री हनुमान जी महाराज का जीवन हमें सीख देता है कि मानव को सदा कृतज्ञ भाव से पर सेवा और परमार्थ में निरत रहना चाहिए। दूसरों की संकट की घड़ी में आप संकट निवारक बन सको इससे श्रेष्ठ जीवन की उपलब्धि और क्या हो सकती है..?

महावीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी।।

जो दूसरों को जीते वो वीर और जो स्वयं को भी जीत जाए उसे महावीर कहते हैं। इससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि दुनिया को जीतने की अपेक्षा स्वयं को जीतना अति कठिन है।

जो संकट मोचक है अर्थात संकट के समय दूसरों के लिए सहायक, जो महावीर है अर्थात दूसरों के साथ – साथ स्वयं के ऊपर भी जिसका नियंत्रण है और जो कुमति का निवारण कर सुमति प्रदान करने वाला अर्थात् कुबुद्धि -कुसंग का नाश कर सुबुद्धि – सत्संग प्रदान करने वाला है। यही तो श्री हनुमानजी महाराज के जीवन की प्रमुख सीख है।

*बुद्धि, बल, भक्ति, विवेक एवं ज्ञान के भंडार भक्त शिरोमणि हनुमान जी महाराज के मंगलमय पावन प्राकट्य उत्सव की आप सभी को कोटि – कोटि शुभकामनाएं एवं मंगल बधाइयाँ ।*

संजीव कृष्ण ठाकुर जी
श्रीधाम वृन्दावन

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