मथुरा :- ब्रज मंडल में जगह-जगह लठामार होली की मान्यता है, लेकिन गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होता है। इसके पीछे भगवान कृष्ण का गोकुल में बीता बचपन है। मान्यता है बाल कृष्ण भगवान के साथ गोपियां छड़ी हाथ में लेकर होली खेलती हैं, क्योंकि भगवान बालस्वरूप थे। इस भावमयी परंपरा के अनुरूप कहीं उनको चोट न लग जाए, इसलिए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है। गोकुल स्थित नंदकिला नंदभवन सेवायत मथुरादास पुजारी नंदबाबा ने बताया कि छड़ीमार होली का उत्सव सदियों से चला आ रहा है, जो आज एक परंपरा बन चुका है। गोकुल की छड़ी मार होली खुद में एक अनोखी विरासत समेटे हुए हैं। प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करते हुए आज भी इस छड़ी मार होली का आयोजन होता है। जिसमें गोकुल की छड़ी मार होली की शुरुआत यमुना किनारे स्थित नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर होती है। भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के बाल स्वरूप पूरे गोकुल गांव में भ्रमण करते हुए यमुना किनारे स्थित मुरली घाट तक आते हैं और रंग गुलाल व फूलों द्वारा यहां होली खेलते हैं। जगह-जगह भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूपों पर फूलों की वर्षा होती है एवं उनकी पूजा की जाती है।
स्थानीय निवासी रमेश चंद मुखिया ने बताया कि होली खेलने वाली गोपियों को 10 दिन पहले से ही हुरियारिन अपनी छड़ियों को तेल पिलाती हैं तो हुरियारिनों को दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है। स्थानीय निवासी छैलबिहारी ने बताया कि बीते वर्षों में 50 गोपियों को होली के लिए तैयार किया जाता था, जबकि इस बार 100 गोपियां बालरूप भगवान कृष्ण बलराम से छड़ी मार होली खेलेंगी। छड़ीमार होली देखने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं।
रिपोर्ट /- प्रताप सिंह