पते की बात:सरकारी जमीनों पर कब्जे का जिहाद…

पते की बात : सरकारी जमीनों पर कब्जे का जिहाद

उत्तराखण्ड के हल्द्वानी जनपद में रेलवे की 2.2 वर्ग किलोमीटर की 29 एकड़ जमीन पर से माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर अवैध कब्ज़ा हटाने के विवाद ने भारत की समाजिक व्यवस्था के एक और खतरे को उद्घाटित कर दिया है। यह विवाद इसलिए उत्पन्न हुआ क्योंकि इसमें देश में मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले अधिकांश राजनैतिक दलों ने इसे मुसलमानों पर अत्याचार के रूप में प्रचारित करना प्रारम्भ करा दिया, उस पर उच्चतम न्यायालय ने उच्च अवैध न्यायालय के फैसले पर रोक लगा कर एक बार फिर न्यायपालिका की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि रातों रात 50 हजार लोग आखिर कैसे हटाए जा सकते हैं। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने कहा कि यह एक ‘मानवीय मुद्दा’ है और कुछ व्यावहारिक समाधान खोजने की जरूरत है।

निश्चित न्यायालयों को संवेदनशील होना ही चाहिए किन्तु जब 19 जनवरी 1990 को साढ़े पाँच लाख कश्मीरी हिन्दू घाटी से विस्थापित हुआ तक शीत लहर नहीं थी, तब क्यों संज्ञान नहीं लिया गया और आज तक नहीं गया, क्यों? क्योंकि कश्मीर घाटी से विस्थापित होने वाले #हिन्दू थे, उनकी बहनों बेटियों के साथ बलात्कार हुए, भारी आगजनी हुई थी, मस्जिदों से घाटी छोड़ कर भाग जाने के फरमान जारी हुए, तब यह संवेदना कहाँ थी ?

और आज तक घाटी में हिन्दू नरसंहार पर कोई जांच क्यों नहीं हुई ? उस घटना को नरसंहार घोषित क्यों नहीं किया गया ? घाटी में बलात्कार व हत्याओं के दोषियों की पहचान क्यों नहीं हुई, उनको सजा मिलना तो दूर की बात है ? क्या यही संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकारों की अनुपालना है ?

हल्द्वानी में कार्यवाही तो माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर देश में विद्यमान कानूनों के अनुसार हो रहीं थी। क्या माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उन पक्षों का ज्ञान नहीं था, जिनका संज्ञान माननीय उच्चतम न्यायालय ने लिया है।

वास्तविकता यह है कि यह जिहाद का एक सुविचारित आयाम है, जिसमें 2047 तक भारत में निज़ाम ए मुस्तफ़ा क़ायम करना है, जिसके अंतर्गत देश के उन राज्यों अथवा जनपदों में जहाँ मुसलमान कम संख्या में है, वहाँ की ( जनसंख्या सन्तुलन ) डेमोग्राफी बदल कर उसे मुस्लिम बहुल बनाना है और काफी समय से उत्तराखण्ड इन जेहादियों के निशाने पर है, क्योंकि यहाँ मुस्लिम आबादी कम है।

शायद आपको पता ना हो, राजनैतिक दलों की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते देश में रक्षा मंत्रालय के बाद सर्वाधिक जमीन आज #वक्फ_बोर्ड के पास है, वह क्यों नहीं अपनी जमीनें इनको दे देते।

इस मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि देश में चाहे जब इन जेहादियों को न्यायिक संरक्षण मिल जाता है, हिन्दुओं को यह संरक्षण क्यों नहीं मिलता ? कुछ कुछ छनकर जो जानकारी आ रहीं है वह यह है कि देश में विभिन्न नामों से इन जेहादियों ने कुछ सामाजिक संगठन बना रखे है, जो अपनी प्रदत सेवाओं का लाभ न्याय जगत के माननीयों कोई प्रदान करते रहते हैं।

प्रश्न यह है क्या लोकतंत्र की आड़ में देश में निज़ाम ए मुस्तफ़ा लागू किया जा रहा है ? क्या देश के विद्यमान कानून इस जेहादियों के षडयंत्रों को रोकने में विफल हैं। हाँ! वर्तमान में तो स्थिति यही है।

क्या माननीय उच्चतम न्यायालय देश को बतायेगा कि –
1. वह 35A के अवैध प्रावधान पर इतने दिनों चुप क्यों था ?
2. देश में अवैधानिक रूप से गठित अल्पसंख्यक आयोग को मान्यता क्यों दी जा रहीं है ?
3. सी ए ए कानून पास होने पर अवैध रूप से शाहीन बाग तथा देश भर में चलाए जा रहे आंदोलन पर उच्चतम न्यायालय की चुप्पी क्यों थी ?
4. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरुप पर आज तक निर्णय क्यों नहीं हुआ ?
5. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आरक्षण लागू क्यों नहीं हो रहा ?
6. 1947 के साम्प्रदायिक आधार पर हुए विभाजन के बाद शेष हिन्दुस्तान में मुसलमानों को कोई भी अधिकार क्यों? उच्चतम न्यायालय इस पर फैसला क्यों नहीं देता ?
~अशोक चौधरी
अध्यक्ष-आहुति

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