चिंतन:”सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं । जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ।।”

राधे – राधे

॥ आज का भगवद चिन्तन ॥

सन्मुख बने रहें

तुम भले हो, बुरे हो, सज्जन हो, दुर्जन हो, पापी हो, पुण्यात्मा हो अथवा जैसे भी हो बस उस प्रभु के बनकर रहो। अपनी दुर्बलता का ज्यादा विचार करोगे तो आपके भीतर हीन भाव आ जायेगा। अपने सत्कर्मों और गुणों को ज्यादा सोचोगे तो अहम भाव आ जायेगा।

भगवान की शरणागति के अलावा किसी अन्य मार्ग से माया को नहीं जीता जा सकता है। एक तो यह माया बड़ी प्रबल है और दूसरे हमारे साधन में निरंतरता नहीं है। यदि गोविन्द की कृपा हो जाये तो काम-क्रोध और विषय- वासना से मुक्त हुआ जा सकता है। प्रभु कृपा से ही माया पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

बस इतना सोचो कि ठाकुर जी के चरण कैसे मिले, शरण कैसे मिले, नाम जप कैसे बढे, संतों में प्रीति कैसे हो और कथा में अनुराग कैसे बढे ? यह सब हो गया तो प्रभु को आते देर न लगेगी।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ।।

संजीव कृष्ण ठाकुर जी
श्रीधाम वृन्दावन

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