चिंतन:संपूर्ण प्रकृति अपने आप में एक विश्वविद्यालय ही है….

राधे – राधे

आज का भगवद् चिंतन

प्रकृति एक विद्यालय

संपूर्ण प्रकृति अपने आप में एक विश्वविद्यालय ही है। इन तीन नियमों से ये प्रकृति मानव जीवन को कुछ महत्वपूर्ण सीख प्रदान करती है।

प्रकृति का पहला नियम* ये कि यदि खेतों में बीज न डाला जाए तो प्रकृति उसे घास फूस और झाड़ियों से भर देती है। ठीक उसी प्रकार से यदि दिमाग में अच्छे एवं सकारात्मक विचार न भरे जाएं तो बुरे एवं नकारात्मक विचार उसमें स्वतः अपनी जगह बना लेते हैं।

प्रकृति का दूसरा नियम* वो ये कि जिसके पास जो होता है, वो वही दूसरों को बाँटता है। जिसके पास सुख होता है, वो सुख बाँटता है। जिनके पास दुख होता है, वो दुख बाँटता है। जिसके पास ज्ञान होता है, वो ज्ञान बाँटता है।जिसके पास हास्य होता है, वो हास्य बाँटता है और जिसके पास क्रोध होता है, वो क्रोध बाँटता है।

प्रकृति का तीसरा नियम वो ये कि भोजन न पचने पर रोग बढ़ जाता है। ज्ञान न पचने पर प्रदर्शन बढ़ जाता है। पैसा न पचने पर अनाचार बढ़ जाता है। प्रशंसा न पचने पर अहंकार बढ़ जाता है। सुख न पचने पर पाप बढ़ जाता है। और सम्मान न पचने पर तामस बढ़ जाता है।

गौभक्त डॉ. संजीव कृष्ण ठाकुर जी
अटलांटा , यू. एस. ए.

 

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