चिंतन:अनूठा है शिव स्वरूप”त्रिशूल वेदना का तो उस पर बंधा डमरू आनंद का प्रतीक “

राधे – राधे

आज का भगवद् चिन्तन

शिव तत्व

भगवान शिव का स्वरूप देखने में बड़ा ही प्रतीकात्मक और सन्देशप्रद है। भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों तापों का प्रतीक है। यहाँ पर एक बात विचारणीय है और वह ये कि भगवान शिव के हाथों में केवल त्रिशूल ही नहीं है अपितु जो त्रिशूल है उसमें भी डमरू बँधा हुआ है। त्रिशूल वेदना का तो डमरू आनंद का प्रतीक है।

जीवन ऐसा ही है। यहाँ वेदना तो है ही मगर आनंद भी कम नहीं है। आज आदमी अपनी वेदनाओं से ही इतना ग्रस्त रहता है कि आनंद उसके लिए मात्र एक काल्पनिक वस्तु बनकर रह गया है। दुखों से ग्रस्त होना यह अपने हाथों में नहीं मगर दुखों से त्रस्त होना यह अवश्य अपने हाथों में है।

भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल और उसके ऊपर लगा डमरू हमें इस बात का सन्देश देता है कि भले ही त्रिशूल रुपी तीनों तापों से तुम ग्रस्त हों मगर डमरू रुपी आनंद भी साथ होगा तो फिर नीरस जीवन भी उमंग और उत्साह से भर जाएग

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