लातेहार। नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ सड़क पर उतरे ग्रामीण। मौन जुलूस निकाल कर किया विरोध प्रदर्शन। दिल्ली जामिया व अलीगढ़ युनिवर्सिटी के छात्रों पर की गई पुलिसिया दमन कि निंदा की, बिल को लेकर असम में मारे गए लोगों के प्रति दो मिनट का मौन रखा गया, राष्ट्रपति के पदनाम ज्ञापन प्रखंड कार्यालय को सौंपा गया।

लातेहार से कुमार सावन की रिपोर्ट

चंदवा/लातेहार: – नए नागरिकता कानुन और एनआरसी के खिलाफ, तथा संविधान बचाओ देश बचाओ को लेकर तिलैयाटांड़ मदरशा खैरूल उलूम से शांति पुर्वक मौन जुलूस निकाला गया, जो बाईपास, सुभाष चौंक, मेन रोड, गैरेजलेन, थाना, इंदिरा गांधी चौंक होते हुए प्रखंड कार्यालय पहुंचकर सभा में तब्दील हो गई, इसका नेतृत्व उप प्रमुख फिरोज अहमद, शमसुल होदा, सामाजिक कार्यकर्ता अयुब खान, अब्दाल मियां, डॉ शम्स रजा, असगर खान, बाबर खान, अलाउद्दीन पप्पू संयुक्त रूप से कर रहे थे, सभा की अध्यक्षता उप प्रमुख फिरोज अहमद कर रहे थे, जुलूस में शामिल लोग अपने हाथों में तिरंगा झंडा और बैनर तख्तियां लिए हुए थे, जिसमें नागरिकता संशोधन बिल वापस लो, एनआरसी वापस लो, आदि नारे लिखे थे,केंद्र की भाजपा सरकार मुसलमानों, आदिवासीयों दलितों, और गरीबों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देना चाहती है,
नागरिकता कानुन वर्तमान शासन का सबसे खतरनाक कदम है, हमने बहुत भारी दिल से विभाजन को स्वीकार किया, चाहे वह मौलाना आजाद, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, सरदार पटेल या महात्मा गांधी हों, हम भारतीयों ने जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत को ठुकरा दिया, हम भारत के नागरिक हैं, फिर भी आज केंद्र की नरेंद्र मोदी जी कि सरकार ने मुसलमानों, आदिवासीयों, दलितों और दूसरे जाति के गरीबों से भारत की नागरिकता होने की सर्टिफिकेट मांग रहे हैं, उनकी मंशा ऐसा कर लोगों को प्रताड़ित करने की है, जिसका पूरजोर विरोध करेंगे,
जाति धर्म के नाम पर राजनीति करने वाला कोई भी देश कभी प्रगति नहीं कर सकता और वही देश प्रगति करेगा जो सबको अपने साथ लेकर चले,
संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर और महात्मा गांधीजी की भावना को चोट पहुंचाने की कोशिश कर रही यह सरकार, एनआरसी और नागरिकता कानून का सिर्फ एक ही आधार है- मुसलमानों, आदिवासीयों दलितों और दूसरे वर्ग गरीबों के साथ भेदभाव कर उन्हें परेशान करना है, बाबा साहेब की संविधान की समानता के सिद्धांत को और गांधीजी के एकता अखंडता को अपने ही देश में ही तहस-नहस किया जा रहा है,
इस कानून का निशाना मुसलमान, आदिवासी, दलित और दूसरे वर्ग के गरीब हैं,
भाजपा सरकार् में इन वर्गों का उत्पीड़न बढ़ा है,
यह कानून समाज को विभाजित करने के अलावा कोई काम नहीं करने वाला, सरकार चुनौतियों वाले अन्य मुद्दों से ध्यान भटका रही है। इसका मकसद समुदाय में भय पैदा करना है, ताकि उनके बच्चे पढ़ नहीं पाएं और वे लोग अपने रोजाना के मुद्दों पर ध्यान न दे पाएं, उनकी प्रगति न हो,
मुसलमानों के हर वर्ग में इसी वजह से चिंता और भय है,
यह कानून गांधीजी तथा बाबा साहेब के भारत के खिलाफ है, धर्मनिरपेक्षता, तथा लोकतंत्र को इससे खतरा है,

लोगों ने खतरे की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि जब आम आदमी समस्या में हो, तो देश प्रगति कर ही नहीं सकता, अभी की सरकार ने जो कुछ किया है- चाहे वे आर्थिक मुद्दे हों या सामाजिक मुद्दे हों, वे सब जनविरोधी हैं, देश को उस स्थिति में ले जा रहे हैं, जहां लोगों को न्याय नहीं मिलेगा, जब आम आदमी प्रगति नहीं करेगा, तो देश की प्रगति कैसे होगी,
देश में एनआरसी की प्रक्रिया होते देखी है, वह कहते हैं कि सवाल यह है कि एनआरसी कराएंगे कैसे, इसे कराने के लिए एक साॅफ्टवेयर होगा और वह साॅफ्टवेयर किसी भी ऐसे दस्तावेज को स्वीकार ही नहीं करेगा जिसमें गलती (स्पेलिंग मिस्टेक) होगी, मतलब दस्तावेजों में नाम-पते वगैरह को लेकर किसी तरह का अंतर हुआ, तो उसे साॅफ्टवेयर स्वीकार नहीं करेगा, और अगर साॅफ्टवेयर मे इमले की गलती की वजह से इसे स्वीकार नहीं किया तो उस व्यक्ति का नाम रजिस्टर भी नहीं होगा,
इससे उसे नागरिकता साबित करने के लिए काफी परेशानी होगी,
अंत में राष्ट्रपति के पदनाम ज्ञापन प्रखंड कार्यालय को सौंपा गया जिसमें नागरिकता संशोधन बिल को वापस लेने के लिए समुचित कदम उठाने की मांग की गई है!

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