दुधमुंहे बच्चे की माँ की मौत से परिवार पर टूटा गमों का पहाड़ नगर के निजी अस्पतालों में मरीज के सीरियस होने पर सरकारी अस्पताल कर दिए जा रहे रिफर

       दुधमुंहे बच्चे की माँ की मौत से परिवार पर टूटा गमों का पहाड़
       नगर के निजी अस्पतालों में मरीज के सीरियस होने पर सरकारी अस्पताल कर दिए जा रहे रिफर
       एक ही रात में दो मरीजों के मरने से निजी अस्पतालों पर उंगली उठना लाजिमी
दुद्धी, सोनभद्र । स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बीती रात दो मरीजों की मौत हो गई। ये दोनों मरीज नगर के एक ही निजी अस्पताल से इलाज़ कराने के बाद सीएचसी पहुंचे थे। इसमें एक मरीज की रात्रि 3 बजे मात्र आधे घंटे इलाज़ के बाद मौत हुई जबकि दूसरा मरीज मरे हुए हालत में ही अस्पताल लाया गया था।

इन मरीजों में विंढमगंज थाना क्षेत्र के हरपुरा गाँव की निवासिनी 22 वर्षीय लीलावती पत्नी गोपाल को पेट दर्द से 3 बजे भोर में मात्र आधे घंटे उपचार के दौरान मौत और 28 वर्षीय विदेश पुत्र रामा हरिजन निवासी रजखड़ गर्दन दर्द से पीड़ित मरीज को मरणासन्न अवस्था मे लाया जाना शामिल हैं। डॉ विनोद सिंह ने बताया कि मरीज के बिल्कुल सीरियस होने पर सरकारी अस्पताल लाया जाता है। चिकित्सक भगवान तो नही, उसे भगवान का रूप माना जाता है, लेकिन पूरी कोशिश के बावजूद जब मरीज को कुछ हो जाता है तो निःसंदेह हम स्वास्थ्यकर्मियों को भी बहुत तकलीफ होती है। अब सवाल यह उठता है कि इन मौतों के पीछे जिम्मेदारी किसकी मानी जाय। मरीज की अज्ञानता, निजी अस्पतालों की धनलिप्सा या फिर स्वास्थ्य विभाग की निजी चिकित्सकों पर नकेल न कसना। बहरहाल जितनी मुंह उतनी बातें चल रही हैं। लेकिन एक बात तो कटु सत्य है कि डा. यूपी पाण्डेय के स्थानांतरण के बाद आमजन की निगाह में सरकारी अस्पताल के चिकित्सकीय प्रणाली की विश्वसनीयता कमजोर हुई है। शायद यही वजह है कि निजी एवं झोलाछाप चिकित्सकों के पास इलाज की दृष्टि से मरीजों की आमोदरख़्त में इजाफा हुआ है। लेकिन सरकारी अस्पताल के चिकित्सक भी करें तो क्या करें। मरीज सीरियस होकर आएगा तो खतरा हमेशा बना ही रहेगा। दूसरी परिस्थितियां यह सामने आ रही है कि मरीज का पैसा निजी व झोलाछाप चिकित्सक पूरा झाड़ ले रहे हैं तब उन्हें सीएचसी या अन्यत्र रिफर कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में गरीब मरीज जो आर्थिक रूप से टूट चुका होता है उसको सरकारी फ्री दवाएं और रिफर होने पर जिला अस्पताल में भी फ्री सुविधा की आस रहती है। आवागमन के लिए 108 जैसी फ्री संसाधन का भी लाभ मिल जाने का आसरा रहता है। सरकार की इन तमाम जनस्वास्थ्य कल्याणकारी योजनाओं के बाद भी जब कोई मरीज दम तोड़ देता है तो परिवार के लोग ईश्वर की नियति मानकर बर्दाश्त कर लेते हैं। उनके बर्दाश्त की लीला कबतक चलती रहेगी यह विकसित समाज के लिए एक बहुत बड़ा प्रश्न है।

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