काले हिरणों का कुलांचे भरते देखना स्वप्न

संवाददाता-संतोष सिंह सा-संपादक (ओबरा/सोनभद्र/ उत्तर प्रदेश)
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सोनभद्र : वन्य जीवों का सच कभी-कभी आंकड़ों और दावों के बीच फंसकर रह जाता है। कुछ यही हाल कैमूर वन्य जीव विहार सोनभद्र की है। यहां पिछले एक दशक में ठोस रूपरेखा जमीन पर नहीं उतरने के कारण काले हिरणों का अस्तित्व संकट में आता गया। हालांकि विभाग ये मानता है कि काले हिरण ठीक स्थिति में हैं, जबकि विभाग के दूसरे कर्मचारी इन्हीं हिरणों की संख्या मात्र 40 से 50 बता रहा है। बहरहाल, शिकारियों की निरंकुशता, असुरक्षा और संरक्षित क्षेत्र में निर्माण कार्य कराते रहना ही यह स्पष्ट कर रहा है कि विभाग ने हिरणों की संख्या वृद्धि को लेकर कभी कोई ठोस पहल नहीं की।
दरअसल, जनपद का कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र काले हिरणों के लिए मशहूर रहा है। इसका क्षेत्रफल 80,502 हेक्टेयर है जो मीरजापुर के अतिरिक्त सोनभद्र के राब‌र्ट्सगंज, गुरमा व घोरावल तक फैला हुआ है। विभागीय सूत्र के मुताबिक इस पूरे क्षेत्र में इस समय काले हिरणों की संख्या मात्र 40 या 50 तक है। वहीं 2013 में इनकी संख्या 671 थी। तीन साल बाद 2016 आते-आते संख्या घटकर 521 हो गई। जबकि प्रभागीय वनाधिकारी इसकी संख्या लगभग एक हजार मान रहे हैं। पिछले 10 साल में मीडिया रिपोर्ट की मानें तो कभी भी हिरणों की संख्या एक हजार के पार नहीं गई है जबकि शिकार, असुरक्षा और संरक्षित क्षेत्र में कार्य कराते रहने की सूचनाएं हमेशा प्रकाशित हुई हैं। इसमें बसौली, रघुनाथपुर व केरवा आदि गांवों के आसपास शिकार होने पर कभी रोक लगी ही नहीं। गुरुदह से लेकर शिल्पी कोरट तक बहुतायत में रहने वाले ये हिरण अब यदाकदा ही दिखते हैं। मंशा पर उठे हैं सवाल : सूत्र ने बताया कि हिरणों की संख्या कम होने के पीछे 2015-16 के दौरान संरक्षित क्षेत्र में दीवार का बनाया जाना भी प्रमुख कारण रहा है, जबकि नियम यह है कि ऐसी जगहों पर कोई नया काम होना ही नहीं चाहिए। दीवार बनाने की मंशा साफ नहीं मानी गई। इसमें हिरणों की सुरक्षा कम जेब भरने का काम ज्यादा किया गया। सुरक्षा प्रदान करने के लिए ही 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची एक के तहत काला हिरन का शिकार निषिद्ध किया गया है। नहीं है कोई व्यवस्था : विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक इस पूरे वन्य जीव क्षेत्र में काले हिरणों के खाने के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है। जबकि मूंग, उड़द, तुवर, सुबबूल, खमेर के बीज बोकर खाने की सुलभता संरक्षण क्षेत्र में देने की जरूरत होती है। इससे हिरण आम आदमी की फसलों को नुकसान करने के लिए मजबूर नहीं करते हैं और वे शिकार से भी बच जाते हैं। ऐसे हैं ये काले हिरण : ये कृष्णमृग बहुसिगा की प्रजाति है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मिलते हैं। काला हिरन बहुसिगा प्रजाति की इकलौती जीवित जाति है। ये भारत समेत नेपाल व पाकिस्तान में पाए जाते हैं। वहीं बांग्लादेश में विलुप्त हो गए हैं। ये 74 से 84 सेमी ऊंचे होते हैं। नर का वजन 20-57 किग्रा यानी औसतन 38 किग्रा होता है, जबकि मादाओं का वजन 20-33 किग्रा यानी औसतन 27 किग्रा होता है। लंबी चक्कर वाली सींग 35-75 सेंटीमीटर आमतौर पर नर पर ही होते हैं। ठोड़ी पर और आंखों के चारों ओर सफेद फर चेहरे पर काली पट्टियों के साथ साफ प्रतीत होता है। ”अभी कैमूर वन्य जीव विहार में लगभग 600 काले हिरण हैं। इस समय हिरणों की गणना की जा रही है। यह कार्य हर दो-दो साल पर किया जाता है।”

-संजीव कुमार सिंह, प्रभारी डीएफओ, कैमूर वन्य जीव विहार, सोनभद्र।

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