(मजदूर दिवस किसानों की आवाज) चाहता हूँ कुछ बोलूँ मैं।
DIGITAL BHARAT NEWS 24x7LiVE– सह- संपादक- संतोष सिंह
चाहता हूँ कुछ बोलूँ मैं।
मैं अन्नदाता विवश किसान
कर्मक्षेत्र, मेरे खेत खलिहान
देता मिट्टी को, स्वेद आहुति
मिलती मुझे सुखदअनुभूति
मेरा नाता,समस्या संघर्षों से
मैं. मौन रहा हूँ वर्षों से
मूक बैन को खोलूँ मैं।
चाहता हूँ कुछ बोलूँ मैं। ।
बने फिरते जो सापेक्षी
बनाया उन्हीं ने मुखापेक्षी
ऋण माफी,आर्थिक सहायिकी
मदद नाम होती अधिनायकी
खाद अन्न बीज मूल्य निर्धारण
बिना किए ही लागत निस्तारण
हुए खर्चों को तोलू मैं।
चाहता हूँ कुछ बोलूँ मैं। ।
कृषि क्षेत्र हो या वानिकी
अतिक्रमण, संकट मानकी
शहरीकरण जंगल कटाव
जलस्रोतों पर पड़ा कुप्रभाव
दिखा सेवा,रोजगार का सपना
लूटा जा रहा थरती घर अपना
आश्वासनों को मोलूँ मैं।
चाहता हूँ कुछ बोलूँ मैं। ।