भारत का स्वर्णिम विजय दिवस

16 दिसम्बर भारतीय इतिहास का बहुत गौरवशाली दिन है, जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान को विभाजित कर बांग्लादेश के जन्म दिया, अपितु पाकिस्तानी सेना के 93 हज़ार सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था भारत की पाकिस्तान पर इस ऐतिहासिक जीत को प्रतिवर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है । 2021 में हम इस ऐतिहासिक विजय को स्वर्णिम वर्ष के रूप में मना रहे हैं।

1971 के पहले बांलादेश, पाकिस्तान का एक प्रान्त था, जिसका नाम ‘पूर्वी पाकिस्तान’ था, जबकि वर्तमान पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान कहते थे। कई सालों के संघर्ष और पाकिस्तान की सेना के अत्याचार और बांग्ला-भाषियों के दमन के विरोध में पूर्वी पाकिस्तान के लोग सड़कों पर उतर आए थे। 1971 में आज़ादी के इस आंदोलन को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह पर आमादा लोगों पर जमकर भयंकर अत्याचार किए। बांग्लादेश सरकार के मुताबिक इस दौरान करीब तीस लाख लोग मारे गए तथा लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या की गईं। एक अनुमान के मुताबिक ऐसी करीब चार लाख महिलाओं के साथ ऐसी ज्यादतियां की गईं

तब भारत ने अच्छे पड़ोसी के नाते इस जुल्म का विरोध किया और मुक्ति वाहिनी के क्रांतिकारियों की मदद की। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी जंग हुई। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिए। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का उदय हुआ।

पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में पंजाबी, सिंधी, पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जबकि पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था। परिणामस्वरूप हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबरदस्त नाराजगी थी और इसी नाराजगी का राजनैतिक लाभ लेने के लिए बांग्लादेश के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबरदस्त विजय हासिल की। उनके दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया लेकिन बजाए उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के उन्हें जेल में डाल दिया गया और यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी गई।

1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याहिया खान राष्ट्रपति थे और 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में सेना एवं पुलिस की अगुआई में जबर्दस्त नरसंहार हुआ। इससे पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबर्दस्त रोष हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली। पाकिस्तानी फौज का निरपराध, हथियार विहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा। जिससे लोगों का पलायन आरंभ हो गया तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकर, बांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया, किन्तु भारत ने अपने यशश्वी जनरल मानेकशाह के नेतृत्व में दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध करके गौरवशाली विजय प्राप्त की ।

हम विश्व की सर्वाधिक वीर शौर्यवान साहसी समाज हैं यह बात हमको सदैव स्मरण रखनी चाहिए और इस भव को अपनी आगामी पीढ़ी में भी स्थानांतरित करनी चाहिए, यही इस दिवस का सार्थक संदेश है।
।। वन्देमातरम ।।

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