राधे – राधे
॥आज का भगवद् चिंतन ॥
सहनशीलता, समर्पण , मौन
सहनशीलता, समर्पण और मौन आपकी उपयोगिता और मूल्य दोनों को बढ़ा देते हैं। किसी ने कटु वचन कहे तो सह लिया और किसी ने यथोचित सम्मान न दिया तो सह लिया। कभी आपके मनोनुकूल कोई कार्य न हुआ तो सह लिया, बस इसी का नाम तो सहनशीलता है।
जिस तरह एक जौहरी किसी मूल्यवान आभूषण के निर्माण से पहले स्वर्ण को टुकड़े – टुकड़े करता है, अग्नि में तपाता है और पीटता है मगर स्वर्ण इतने आघातों को सहने के बावजूद भी कभी विरोध नहीं करता अपितु जौहरी की ही रजा में राजी रहता है, इसी को समर्पण कहा जाता है।
अकारण किसी वाद विवाद से दूर रहना, बात – बात पर अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करने का प्रयास नहीं करना और सबकी सुनना पर केवल आवश्यकता पड़ने पर ही सम्यक वाणी बोलना, इसी को मौन कहा गया है। इन तीन गुणों को जीवन में धारण करके वाला व्यक्ति अवश्य महान बन जाता है।
गौभक्त डॉ. संजीव कृष्ण ठाकुर जी
श्रीधाम वृन्दावन