चिंतन:(मनोनिग्रह) धन और मन दोनों कैद करना अत्यंत दुष्कर है….

राधे – राधे

आज का भगवद चिन्तन

मनोनिग्रह

जिस प्रकार मन को मुट्ठी में कैद रखना बहुत दुष्कर है ठीक इसी प्रकार धन को भी कैद रखना अति दुष्कर होता है। चित्त और वित्त की स्थिति लगभग सदैव एक जैसी ही है। लक्ष्मी जी का एक नाम चंचला भी है। यह नारायण के चरणों के सिवा एक जगह पर कभी स्थिर रह ही नहीं पाती है।

हमारा मन वहीं ज्यादा जाता है जहाँ हम इसे रोकना चाहते हैं। इसीलिए ही कहा गया है कि मन के लिए निषेध ही निमंत्रण का काम करता है। जहाँ से हटाना चाहोगे यह उसी तरफ भागेगा। ठीक ऐसे ही धन जब आता है तो शांति भी बाहर की और भागने लगती है। धन के साथ-साथ स्वयं की शांति और पारिवारिक सद्भाव बना रहे, यह वर्तमान परिपेक्ष्य में थोड़ा मुश्किल काम है।

चित्त और वित्त दोनों चंचल हैं, दोनों जायेंगे ही, इसलिए दोनों को जाने भी दो मगर कहाँ ? जहाँ सत्संग हो, साधु सेवा हो, परोपकार हो, जहाँ प्रभु का द्वार हो और जहाँ से हमारा उद्धार हो। चित्त और वित्त जब नारायण के चरणों में जाते हैं तो वहाँ उनमें सहज स्थिरता भी आ आती है।

संजीव कृष्ण ठाकुर जी
श्री नैमिषारण्य धाम

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