चिंतन:व्यक्तित्व की भी अपनी भाषा होती है जो कलम या जिह्वा के इस्तेमाल के बिना भी लोगों के अंतर्मन को छू जाती है..

राधे – राधे

॥आज का भगवद् चिंतन॥
” व्यक्तित्व की भाषा ”
स्वभाव में ही किसी व्यक्ति का प्रभाव झलकता है। व्यक्तित्व की भी अपनी भाषा होती है जो कलम या जिह्वा के इस्तेमाल के बिना भी लोगों के अंतर्मन को छू जाती है। जिस प्रकार कस्तूरी की पहचान उसकी सुगंधी से होती है, उसी प्रकार व्यक्तित्व की भी अपनी एक सुगंधी होती है, जिसे बताया अथवा दिखाया तो नहीं जा सकता केवल महसूस किया जा सकता है।

सिंहासन पर बैठकर व्यक्तित्व महान नहीं बनता अपितु महान व्यक्तित्व एक दिन जन-जन के हृदय सिंहासन पर अवश्य बैठ जाता है। सिंहासन पर बैठना जीवन की उपलब्धि हो अथवा नहीं मगर किसी के हृदय में बैठना जीवन की वास्तविक उपलब्धि अवश्य है।

राज सिंहासन पर बैठ सको न बैठ सको मगर किसी के हृदय सिंहासन पर बैठ सको तो समझना चाहिए कि आपका जीवन सार्थक हो गया है और यही तो विराट व्यक्तित्व का एक प्रधान गुण भी है।

गौभक्त डॉ. संजीव कृष्ण ठाकुर जी*
कैलीफोर्निया , यू. एस. ए.

 

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