पते की बात : प्रतिभाशाली कार्यकर्ताओं का अभाव झेलते राजनैतिक दल
देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था एक अँधेरी सुरंग में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ राजनैतिक दलों में अच्छी प्रतिभाओं की उदय प्रक्रिया ध्वस्त होती जा रही है। पहले देश में चलने वाले विभिन्न आंदोलनों से राजनैतिक दलों में प्रतिभाओं का उदय होता था।
वर्तमान में स्थिति यह है, प्रत्येक स्तर पर बढ़ते पैसे के चलन और भ्रष्टाचार के कारण राजनैतिक दलों में अच्छी सामाजिक प्रतिभाओं, विचारकों का अभाव होता जा रहा है। इसका एक बड़ा कारण राजनैतिक दलों में चलाने वाली निम्नस्तरीय गुटबंदी भी है।
अर्थशास्त्र में एक नियम है ‘ग्रेशम का का नियम’ जो इस प्रकार है कि *बुरी मुद्रा में अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर करने कि प्रवत्ती होती है।* यह नियम राजनैतिक संगठनों में भी प्रभावी है, अच्छी प्रतिभाओं को अपराधी चरित्रों द्वारा हाशिये पर धकेलने की लगातार कोशिश होती है, जिन्हें बचाने अथवा संरक्षित करने की कोई व्यवस्था राजनैतिक दलों में नहीं है।
देश के अधिकांश राजनैतिक दल अवैध कारोबार के संरक्षण केंद्र बन गये हैं। एक मात्र सत्ता हथियाना और उसके लिए कुछ भी करना ही अब राजनीति का अंतिम उद्देश्य है।
आप विचार करें कि आज समाज में अच्छी प्रतिभायें अपने जॉब के लिए बाहर पलायन कर जाती हैं, केवल सी ग्रेड के कार्यकर्त्ता ही महानगरों, नगरों व क़स्बाओं में बचते हैं। इस पर चुनावों में जातिगत समीकरणों की अनिवार्यता से चलते अच्छी प्रतिभाओं का पतन हो जाता है।
आप यह जान लीजिये कि राजनैतिक दलों में उत्तम चरित्र को प्राथमिकता नहीं मिली तो इस देश के स्वर्णिम भविष्य की कल्पना को स्थायित्व मिलना असम्भव है।
आज स्थिति यहाँ तक आ गयी है कि सरकार चलाने के लिए अब राजनैतिक दलों को रिटायर्ड आईएएस आईपीएस आदि को मंत्री या आयोगों का अध्यक्ष बनाना पड़ रहा है, तब फिर इन चुनाव व्यवस्थाओं का मूल्य ही क्या रह जायेगा?
देश में आज तक विधि (कानून) बनाने वाली संसद और विधान सभाओं में जाने वाले प्रतिनिधियों की न्यूनतम योग्यता निर्धारित नहीं हो सकी है। #भाजपा, जो भारत को समृद्ध राष्ट्र बनने के आदर्श संकल्प के साथ निकली है, वह भी सांसदों-विधायकों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता या कोई आंतरिक संगठनात्मक परीक्षा की व्यवस्था नहीं कर सकी है।
यह स्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के भविष्य के लिए गंभीर खतरा है, इस प्रतिभा अभाव से राजनैतिक संगठनों और उनके द्वारा संचालित विभिन्न सत्ता केंद्रों पर अपराधियों और माफियाओं का कब्जा हो जायेगा, कुछ जगह यह होता भी दिख रहा है, ऐसी अपराधी शक्तियों को हटाना इस व्यवस्था में बहुत कठिन हो रहा है क्योंकि उन्हें भ्रष्ट नौकरशाहों का साथ भी मिल जाता है।
यह अपराधी चरित्र के लोग अपने ऊपर हुए प्रत्येक प्रहार को खतरनाक ढंग से जातिवादी अथवा साम्प्रदायिक ढाल से रोकते हैं।
अब विचार करने वाला प्रश्न यह है कि व्यवस्था में प्रतिभाओं के अभाव या पलायन की स्थिति से कइसव कैसे बचा जा सकेगा ? लोकतंत्र का आदर्श स्वरूप कैसे समृद्ध होगा? वर्तमान संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था, यदि इसमें सुधार सम्भव नहीं है, तो विकल्प क्या है? क्या प्राचीन भारतीय गणराज्य व्यवस्था इसका विकल्प हो सकता है? ऐसे अनेक प्रश्न है जो मानस को उद्देलित कर रहें है, समाधान परमावश्यक है!
यह मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ इसलिए भी लिखा रहा हूँ कि वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था प्रत्येक स्तर पर हमारी सनातन संस्कृति संरक्षित करने के स्थान पर उस पर निरंतर कुठराघात कर रही है।
~अशोक चौधरी
अध्यक्ष – आहुति अलीगढ़