चिंतन:जीवन भोगमय नहीं योगमय होना चाहिए..

राधे – राधे

आज का भगवद चिन्तन

हमारा जीवन भोगमय नहीं योगमय होना चाहिए। सफलता अकेले नहीं आती वह अपने साथ अभिमान को लेकर भी आती है और यही अभिमान हमारे दुखों का कारण बन जाता है। ऐसे ही असफलता भी अकेले नहीं आती, वह भी अपने साथ निराशा को लेकर आती है और निराशा प्रगति पथ में एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर देती है।

सफलता व असफलता से कुछ सीख लेना एक योगी का लक्षण है। प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य को जीवन जीने के दो मार्ग दिए हैं। हम अपने जीवन को योगी बनाकर जिएं अथवा भोगी बनाकर ये व्यक्ति के स्वयं के ऊपर निर्भर है। दुख, कटुवचन और अपमान सहने की क्षमता का विकास तथा सुख, प्रशंसा और सम्मान पचाने की सामर्थ्य ही गृहस्थ धर्म का योग भी है।

अत: हर स्थिति का मुस्कराकर सामना करने की क्षमता, किसी भी स्थिति को अच्छी या बुरी न कहकर समभाव में रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर लगातार आगे बढ़ने का कौशल, यही जीवन का योग है। योगमय जीवन ही योगेश्वर तक पहुंचाता है।

संजीव कृष्ण ठाकुर जी
काठमांडू नेपाल

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